अकबर-बीरबल की मजेदार कहानी: अनमोल अंगूठी

 






अकबर-बीरबल की मजेदार कहानी: अनमोल अंगूठी

एक दिन बादशाह अकबर ने अपनी अनमोल अंगूठी खो दी। दरबार में सभी दरबारियों को बुलाया गया और अकबर ने घोषणा की, "मेरी अनमोल अंगूठी खो गई है। जिसे भी यह अंगूठी मिलेगी, उसे मैं इनाम दूंगा।"

बीरबल ने सभी दरबारियों से कहा, "जिसने भी यह अंगूठी ली है, उसे इसे वापस कर देना चाहिए। अन्यथा, हम उसे पहचान लेंगे।"

किसी ने अंगूठी वापस नहीं की। बीरबल ने तब कहा, "ठीक है, मैं एक तरकीब आजमाता हूँ। दरबार में हर किसी के पास एक पत्ता होना चाहिए। रात में यह पत्ता चीखने लगेगा और हमें चोर का पता चल जाएगा।"

उस रात, सभी दरबारियों को पत्ता दिया गया। अगली सुबह, बीरबल ने सभी दरबारियों से उनके पत्तों को दिखाने के लिए कहा। एक दरबारी के पत्ते पर निशान थे। बीरबल ने उस दरबारी से पूछा, "तुमने इस पत्ते पर निशान क्यों बनाए?"

दरबारी ने घबराकर कहा, "मैंने सोचा कि अगर पत्ता चीखेगा, तो मैं इसे पहचान सकूँगा और इसे छुपा दूँगा।"

बीरबल मुस्कुराए और बोले, "यही वह चोर है। वह पत्ते के चीखने की बात से डर गया था और इसलिए उसने इस पर निशान बनाए।"

दरबारी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और अंगूठी वापस कर दी। अकबर ने बीरबल की बुद्धिमानी की प्रशंसा की और चोर को उचित सजा दी।

सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चाई को छुपाना मुश्किल होता है और बुद्धिमानी से किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।

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