दारू और मदिरा से भी ज्यादा नशा करता है यह


 

भक्ति और मदिरा

  1. राम का नाम ही मधुशाला, पी ले मन के प्याले से,
    फिर न भटकेगा यह जीवन, रहे न कुछ भी ख्याले से।

  2. कृष्ण का नाम है अमृत, फिर क्यों पीता विष का जाम,
    जो गोविंद की लहर में खोया, मिल गया उसको धाम।

  3. शंकर ने गरल पिया, बना नीलकंठ महान,
    पर तू पीकर मदिरा, खो बैठा पहचान।

  4. जो भक्ति का रस पी ले, उसे क्या चाहिए हाला,
    हरि की मस्ती में डूबा मन, यही है असली मधुशाला।

  5. सत्य-सनातन धर्म हमारा, इसमें क्यों यह प्याला,
    राम-नाम की मस्ती में, बहा दे मदिरा की हाला।


  1. भोले के भस्म से खेलो, क्यों पीते हो शराब,
    महादेव की भक्ति में ही है, आनंद और आब।

  2. कैलाश के वासी हैं शिव, गंगा जिनकी जटा,
    जो मदिरा में डूब गया, वह खुद से ही कटा।

  3. रुद्र की जटा से गंगा बही, जीवन का दे संज्ञान,
    पर जो साकी के हाथ चला, वह खो बैठा पहचान।

  4. शिव ने विष पीकर अमर हुए, तुम हाला पीकर मरे,
    जो भक्ति का पथ न अपनाए, वे ही भवसागर में तरे।

  5. जो बम-बम बोले, वहीं शिव का दास है,
    जो जाम से हारा, वही सबसे उदास है।


  1. गोपाल की बंसी की तान में, मस्ती की हर धारा,
    फिर क्यों मदिरा के नशे में, तूने जीवन हारा।

  2. अयोध्या में राम बसे, वृंदावन में घनश्याम,
    जो हाला का प्याला उठाए, उसका होता बुरा अंजाम।

  3. सुदामा ने प्रेम पिया, द्वारकाधीश ने उसे अपनाया,
    पर जिसने मदिरा को पूजा, उसने जीवन गंवाया।

  4. सीता के राम और राधा के मोहन,
    इनके चरणों में ही सच्ची मधुशाला का होना।

  5. जो नाम हरे का जपे, वही असली मस्ताना,
    बाकी सब बस हैं, मोह-माया के दीवाने।

  1. कबीर ने कहा जगत को, क्यों बहके तू हाला में,
    राम-नाम अमृत से प्यारा, फिर क्यों फंसे प्याला में?

  2. तुलसीदास ने कह दिया, सत्य का सागर राम,
    फिर क्यों मदिरा में डूबकर, करता जीवन तमाम?

  3. मीरा ने पी लिया विष, कृष्ण नाम का प्याला,
    तू क्यों हाला में डूबा, छोड़ के भक्ति की माला?

  4. संत रविदास ने भी कहा, राम-रस सबसे मीठा,
    फिर क्यों हाला में तू बहा, छोड़ के हरि का गीत?

  5. साईं कहते, अलख जगाओ, हरि नाम का लो सहारा,
    मदिरा को त्यागो, प्रेम से पुकारो, यही जीवन का सहारा।










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