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दारु  से पतन 

हिंदू धर्म और आध्यात्मिकता में मदिरा (शराब) को आत्म-विनाश और आध्यात्मिक पतन का कारण माना गया है। शास्त्रों और संतों ने इसे त्यागने की प्रेरणा दी है। यहां आध्यात्मिक दृष्टि से मदिरा के कुछ प्रमुख नुकसान बताए जा रहे हैं:

       

🔹 हिंदू धर्म में शरीर को "मंदिर" माना गया है, जिसमें आत्मा का वास होता है। मदिरा का सेवन इस पवित्रता को दूषित करता है और आत्मा की दिव्यता को कमजोर करता है।
🔹 श्रीमद्भगवद्गीता (6.16) में कहा गया है कि "जो व्यक्ति अति भोजन करता है, मदिरा का सेवन करता है, वह योग मार्ग से दूर हो जाता है।"


🔹 मदिरा का प्रभाव मन को चंचल और अशांत कर देता है, जिससे साधना, ध्यान और भक्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
🔹 ध्यान और जप करने के लिए निर्मल और स्थिर मन आवश्यक है, लेकिन शराब इसे अशुद्ध और भटकाने वाला बना देती है।


🔹 मदिरा पीने से व्यक्ति अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाता है और अधर्म की ओर बढ़ने लगता है।
🔹 "रामचरितमानस" में तुलसीदास जी ने कहा है:
"काम क्रोध मद लोभ सब, नाथ नरक के द्वार।"
अर्थात ये सभी दुर्गुण नरक के द्वार खोलते हैं, और मदिरा इन्हें बढ़ाने का कार्य करती है।


🔹 मदिरा का सेवन करने से व्यक्ति की सात्त्विकता (पवित्रता) कम हो जाती है और तामसिक (नकारात्मक) प्रवृत्तियाँ बढ़ जाती हैं।
🔹 "श्रीमद्भगवद्गीता" (17.8-10) में कहा गया है कि सात्त्विक भोजन व्यक्ति को बल और आयु प्रदान करता है, जबकि तामसिक वस्तुएं (जैसे मदिरा) रोग और मानसिक अशांति का कारण बनती हैं।


🔹 भगवान शिव ने समुद्र मंथन में विष को ग्रहण किया, लेकिन   लेकिन उन्होंने यह सब संसार के हित के लिए किया था जबकि आज के युवालोग  दारू का सेवन मात्रा अपने जीभ  के स्वाद के लिए और मजे के लिए करते हैं  ।

. रामायण में श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और उन्होंने कभी मदिरा का सेवन नहीं किया, इसलिए उनके भक्तों को भी इसे त्यागना चाहिए।

 मदिरा का सेवन करने वाला व्यक्ति अपने संस्कारों और परिवारिक मूल्यों को भूल जाता है। वह अपने माता-पिता,  और धर्म की सीख को अनदेखा कर देता है, जिससे उसके जीवन में अस्थिरता आ जाती है।


🔹 मदिरा मोह और वासनाओं को बढ़ाने का कार्य करती है, जिससे व्यक्ति विषय-वासनाओं में लिप्त हो जाता है।
🔹 यह न केवल वर्तमान जन्म को दूषित करती है बल्कि अगले जन्मों में भी अशुभ परिणाम देती है।


🔹 गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि जो व्यक्ति मदिरा का सेवन करता है, उसे मृत्यु के बाद कठिन यातनाओं का सामना करना पड़ता है।
🔹 ऐसा व्यक्ति अपने अगले जन्म में भी अशुभ परिस्थितियों में जन्म लेता है।


🔹 जो व्यक्ति मदिरा का सेवन करता है, वह अपने जीवन में किए गए पुण्यों को नष्ट कर देता है और नए पापों का संचय करता है।
🔹 यह आध्यात्मिक उन्नति को रोकने का सबसे बड़ा कारण बनता है।


🔹 भगवान से जुड़ने के लिए मन और आत्मा की पवित्रता आवश्यक है, लेकिन मदिरा मन को अशुद्ध कर देती है और व्यक्ति को भगवान से दूर कर देती है।
🔹 श्रीमद्भगवद्गीता (2.64) में कहा गया है कि "इन्द्रियों पर संयम रखने वाला ही भगवत्प्राप्ति के योग्य होता है।"


हिंदू धर्म और अध्यात्म में मदिरा को विनाशकारी बताया गया है। जो व्यक्ति भक्ति, योग और मोक्ष की राह पर चलना चाहता है, उसे मदिरा का पूर्ण रूप से त्याग करना चाहिए। रामायण, गीता, वेद और उपनिषदों में इसे त्याज्य बताया गया है।

🙏 "हरि नाम की मस्ती में जो खोया, उसे न मदिरा की जरुरत है, न किसी और नशे की।" 🙏




कोई भी व्यक्ति जो दारू अधिक मात्रा में पिता है उसका दिन पर दिन दिमाग कमजोर होते  चला जाता है और दिमाग कमजोर होने से वह सही खराब ,अच्छा - बुरा इत्यादि का  निर्णय लेने में असमर्थ होता जाता है इस तरह से देखा जाए तो अपने वह खुद के जीवन में और परिवार के जीवन में तालमेल  बैठने में एकदम असमर्थ हो जाता है और उसका जीवन नष्ट हो जाता है। 


इसतरह वह होकर भी धरती पर नहीं होता है, इसलिए जो व्यक्ति  अगर अपना घर परिवार  चलाना चाहते हैं तो उन्हें दारू के सेवन को बंद करना होगा हालांकि यह बंद करना उतना आसान भी नहीं है जितना ज्यादा आसानी से यहां लिख दिया जा रहा है क्योंकि कोई भी गलत आदत छोड़ने में एकदम व्यक्ति की लगभग नस कबर  जाती है अर्थात उसे बहुत ही ज्यादा मेहनत करना पड़ता है और दिन प्रतिदिन मेहनत करना पड़ता है वह अभी कंटीन्यूअस ढंग से क्योंकि हमला कभी भी हो सकता है यहां हमला होने का मतलब है दारु पीने की इच्छा से है क्योंकि दारु पीने की इच्छा जब समय पर जागती है तो वह व्यक्ति को खींचकर दारू के खाने पर ले जाती है अर्थात दारूखाने पर ले जाती है और एक बार वहां पहुंचते ही व्यक्ति अपना बुद्धि - विवेक  डबल  रेट से खो देता है और गटागट दारु पीने लगता है और पी लेने के बाद वह अपना  बुद्धि - विवेक हाई परसेंटेज के रूप में खो देता है वैसे यह परसेंटेज इस बात पर डिपेंड करता है कि उस व्यक्ति ने उस समय 

 कितने परसेंटेज और अमाउंट में दारू लिया है। 



दारु पीने वाले अपना घर - द्वारा दोनों फूक  (बर्बाद )  करके रख देते हैं. इसलिए सभी दारु पीने वालों को चाहिए कि वह अपना दारु पीने का आदत जल्द से जल्द छोड़ दे यदि वे अपना घर परिवार अच्छी तरह से चलाना चाहते हैं तो क्योंकि इतिहास गवाह है कि दारु पीने वाले का घर अपने आप जलकर खाक हो जाता है.इसलिए सभी दारू पिने वाले भाई - बंधू  जल्दी से दारू पिंका बंद करे।  दारु पिने वाला केवल खुद खुस होना चाहता है।  वह परिवार ,रिस्तेदार और समाज के बारे में बहुत कम परसेंटेज के रूप सोचता है जबकि खुद के बारे में बहुत ज्यादा। 


इसलिए  दारु बंद हिना चाहिए और केवल ब्यक्ति विशेष तक ही न बंद हो बल्कि गांव,शहर और राज्य तक बंद हो अर्थात  दारू  केवल बिहार तक ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश और दूसरे अन्य राज्यों में भी दारू की पूरी तरह से बंद हो जाना चाहिए।  


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