शास्त्र में कहा गया है की धरती पर अगर किसी इंसान के लिए कोई बड़ा अस्तित्व है तो वह है माता का अर्थात किसी इंसान के लिए माता ही सर्वश्रेष्ठ होती है ,उसके बाद फिर पिता होता है और उसके बाद नंबर आता है स्कूल कॉलेज में पढ़ाने वाले साधारण गुरुओं का. लेकिन आजकल का युवा शादी के बाद अपनी पत्नी को ही अपनी मम्मी समझने लग रहा है और उसी की ही सारी बात मान रहा है गलत - सही सब बात मान रहा है, कॉमन सेंस की बात है अगर सही बात रहती है तो वह मान भी सकता है लेकिन गलत बात को भी वह मान रहा है यही बात उसकी मूर्खता का सूचक है. और यह सब अज्ञान के कारण ही हो रहा है (अगर उसके पास श्री गीता का ज्ञान होता तो वह ऐसा कदापि गलती नहीं करता पत्नी से प्रेम करना चाहिए लेकिन उसे अपनी मम्मी ही नहीं बना लेनी चाहिए.)
वह क्या जाने की किसी भी साधारण गुरु से पिता 100 गुना श्रेष्ठ होता है और पिता से हजार गुना श्रेष्ठ माता होती है ,तो जो माता ,पिता से 1000 गुना श्रेष्ठ है वह समझिए कि साधारण स्कूल कॉलेज में या चलते फिरते राह में मिलने वाले गुरुओं से कितना श्रेष्ठ होगी,
इंसान माता की वैल्यू नहीं समझता लेकिन अगर आत्म चिंतन करें और आत्म मंथन करें तो उसे पता चलेगा कि जिस वृक्ष का वह फूल है उस वृक्ष ने उसे कितना मेहनत से सींचा है संवारा है भले ही वह फूल उस मेहनत को नहीं देखता है, लेकिन फूल को सिखाने में वह वृक्ष बहुत ही मेहनत लगाता है ( यहाँ वृक्ष माता है और फल पुत्र } ऐसे ही आज का युवा ध्यान नहीं देता है कि उसकी माता ने उसे कितने श्रम - परिश्रम से उसे पाला है वह ऐसा क्यों नहीं देख पता उसकी भी एक वजह है वजह यह है कि वह एक फ्री ब्यक्ति होकर सोचता है, माता के भाव से वह सोच पता ही नहीं है क्योंकि वह भाव उसके अंदर होता ही नहीं है ,वैसा पूरा का पूरा भाव होने के लिए उसे माता बनना पड़ेगा और माता बनाने के लिए उसे अपने कोख से संतान को जन्म देना पड़ेगा तब उसे अंदाजा होगा की माता बनने में कितनी पीड़ा होती है कुछ चीजों को महसूस करके ही समझा जाता है इसलिए जो संतान अत्यंत दुराचारी व्यवहार करता है अपने माता-पिता से ,अगले जन्म में उसे वैसा ही फल मिलता है,
तो क्या कहने का मतलब यह हुआ कि हमें अपने माता-पिता से कुछ भी नहीं कहना चाहिए अगर ऐसा कुछ युवा लोग सो रहे हैं तो यह बिल्कुल ही गलत है.
, पुत्र चाहे तो अपने माता-पिता से दिशा - निर्देश , सलाह- मशवरा इत्यादि की बातें कर सकता है जिसमें यह करना चाहिए ,वह करना चाहिए, इस तरह की बातें वह कह सकता है लेकिन कहने में वह काफी विनम्रता दिखाएं , बहुत अकड़ कर बात ना करें , यह नहीं की यह नहीं की बात करते समय लगे माता-पिता का बाप बनने और अगर कन्या है तो वह माता-पिता का मां बनने की कोशिश ना करें मतलब दोनों वर्ग के लिए ( अर्थात पुरुष युवक और युवतियो ) यहां बातें कह दी जा रही है. तो जैसे यहां पर बताया गया है की माता का कितना बड़ा योगदान है हर इंसान की जिंदगी में .
उपरोक्त बाते (मतलब ऊपर की बाते ) एक तरह का ज्ञान ही थी लेकिन यह ऊपर की बातें जो ज्ञान रूपी में यहां प्रकाशित हुई है वह आई कहां से थी यह भी जान लेना बहुत ही जरूरी है क्या आप इसका उत्तर दे सकते हैं ? अगर दे सकते हैं तो थोड़ा देर सोच कर दिखे , दरअसलअब ऊपर की बाते शास्त्र ज्ञान से ही आये है अतः किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ,जिंदगी की चाल कैसी होनी चाहिए यह सब कुछ समझने के लिए आपको शास्त्र अध्ययन करना ही चाहिए
और यहां पर यह भी नहीं कहा जा रहा है कि आपके ऊपर किसी तरह का बहुत बड़ा बंधन है कि जो कुछ आप शास्त्र में पढ़ रहे हैं उसे पूरा का पूरा अपने जीवन में उतार ही देना है ऐसा कुछ नहीं कहा जा रहा है ,आपसे जितना हो रहा है उतना शास्त्र का ज्ञान अपने अंदर उतारिये , जितना अपनी सामर्थ्य -शक्ति के अनुसार उतर सकते है उतना उतारिये .
भरसक कोशिस यही करिये की जो चीज आपको बहुत ही ज्यादा जम रही है उसे अपने जिंदगी में उतार लीजिए और घर की सेवा कीजिए और सेवा करने पर नाम यह नहीं है कि केवल अपनी पत्नी की ही सेवा कीजिए अपने से बड़े लोगों का सेवा कीजिए जो अत्यंत आपसे छोटे हैं उनकी सेवा कीजिए और पत्नी को भी जिस तरह की सेवा की जरूरत है वह सेवा करिए यह नहीं कि लगे पत्नी का हाथ -- पैर ही दबाने , वह भी ठीक है लेकिन अत्यंत रोग होने पर या आवश्यकता से अधिक जरूरत होने पर
और जो आपके समकालीन है उन्हें थोड़ा ज्ञान - बुद्धि ,विवेक, पैसा जितना आप दे सकते हैं उन्हें देकर उनकी सेवा करिए.
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