कक्षा चौथी तक जाते-जाते बच्चों को यह पता हो जाना चाहिए कि हां श्री गीता का ज्ञान उनके जीवन में कितना जरुरी है और बिना इसके उनका जीवन दुःख और गलत चुनौती से ही भरा है .
यदि श्री गीता का ज्ञान से ही प्रवेश करा दिया जाए, केवल सार - संक्षिप्त से ही या डेमो के रूप में ही थोड़े-थोड़े ज्ञान बच्चो को दे दिए जाएं या टेक्स्ट ही पढ़ा दिया जाए तो उनके लिए यह ज्ञान बहुत ही फायदेमंद होगा और अमृत के सामान होगा जो वर्तमान से लेकर भविष्य तक की सुधार कर देगा क्योंकि इतना ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्हें पता चल जाएगा कि उन्हें करना क्या है ?
कक्षा चौथी तक जाते-जाते बच्चों श्री गीता शास्त्र के सार -संछेप अर्थात लगभग 20 % से 30 % का ज्ञान होना चाहिए और उन्हें आगे चलकर इसे विधिवत पढ़ना है ताकि छठी सातवीं आठवीं क्लास जाते-जाते हैं वह श्री गीता शास्त्र का कंपलीट अध्ययन कर ले . इन सब बातो का ज्ञान उसे होना चाहिए और जब वह श्री गीता का कंप्लीट अध्ययन कर लेगा तो उसे पता चल जाएगा कि हां उसे आगे क्या करना है और क्या नहीं करना है ?
ज्यादातर लोग डर जाते हैं वह सोचते हैं कि श्री गीता शास्त्र का अध्ययन करने से हमारा बच्चा घर छोड़ कर चला जा सकता है ऐसी कोई बात ही उसमें नहीं लिखी गई है घर छोड़ने की . उसमें तो केवल बुराई रूपी घर छोड़ने की बात कही गई है जबकि लोग मूर्खता के कारण अपना घर छोड़ देते हैं
वह तो केवल बुराई रूपी घर छोड़ने की बात करते हैं या नहीं कि आप घर संसार छोड़ दे वैसे भी श्री गीता शास्त्र में लिखा गया है कि जो व्यक्ति घर संसार में रहते हुए भगवान की आराधना करता है वही सच्चा साधक होता है क्योंकि यहां पर घर संसार में रहकर साधना करना बहुत ही कठिन काम है. वन में जाकर तो कोई भी तपस्या कर लेता है. लेकिन संसार में रहकर ज्ञान प्राप्त करना अति कठिन काम है . इसलिए यहां पर तो घर छोड़ने की बात है ही नहीं . ज्ञान तो बहुत से हैं लेकिन जो श्री गीता का ज्ञान है वही सर्वोच्च ज्ञान माना जाता है इसलिए उसे ही पहले प्राप्त करें याद रखिएगा किसी मिठाई की दुकान पर आप जाते हैं तो आप वही मिठाई खाते हैं जो आपको सबसे ज्यादा पसंद हो फिर उसके बाद वह मिठाई खाते हैं जो थोड़ा कम पसंद हो तो जब खाने की चीज में आप सर्वोच्च चीज चाहते हैं तो ज्ञान के क्षेत्र में आप सर्वोच्च चीज पहले क्यों नहीं लेना चाहते,
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