You won't be satisfied no matter how much You eat



खाते-खाते पूरा जीवन बीत जाएगा लेकिन यह मन कभी नहीं भरेगा, तुम यह सोचोगे कि आज यह खा लूं वह खा लू ताकि मन को थोड़ा सा आराम मिल जाए लेकिन मन को तो थोड़ी देर के लिए थोड़ा सा आराम मिलेगा ही लेकिन हमेशा हमेशा के लिए  आराम कदापि नहीं मिलेगा क्योंकि ऐसा कुछ खाना बना ही नहीं है धरती पर जिसे खाकर तुम हमेशा -हमेशा के लिए अपने मन को शांत कर लो. 


कभी सोचता है मन  की रसगुल्ला खा लो तो कभी भेलपुरी khaane की सोचता है, कभी सोचता है कि चलो आज आलू के पराठे खूब खाते  हैं, कभी यह सोचता है कि आज छोला भटूरा खाते  हैं, कभी यह भी सोचता है कि चलो आज मसाल- ढोसा खाते हैं, पिज्जा खाते हैं, बर्गर खाते हैं................. इत्यादि इत्यादि.  इस तरह से मन तमाम प्रकार की चीज खाने की सोचता रहता है और हम खाते भी हैं और दूसरे तीसरे या हर रोज ही लगभग कोई ना कोई चटकदार चीज खाते ही  हैं ताकि उस चटकदार चीज के खाने से हमारे मन की जो बेचैनी है वह शांत हो जाए और हमारे मन  को थोड़ा सा ही सही लेकिन राहत मिल जाए. 


होता भी ऐसा है जब मन में खाने की बेचैनी  छटपटाहट   जागती है तो हम जैसे ही उस छटपटाहट और चाहत को पूरा करते  है   तो थोड़ी देर के लिए मन तो शांत हो ही जाता है लेकिन हमेशा -हमेशा के Liye शांत नहीं होता।  जैसे की 5 मिनट या 10 मिनट या 20 मिनट या 30 मिनट या बहुत करें तो एक घंटा उससे ज्यादा नहीं ,इतनी देर के लिए मन शांत रहता है उसके बाद फिर वह खाली हो जाता है और फिर उत्पात  मचाने लगता है. 


और फिर थोड़ी ही देर बाद कोई न कोई नया चीज डिमांड करता है जिसे आपका खाने का मन करता है और खाने का मन करेगा तो या तो आप खुद बनाएंगे या बाहर से खरीद कर खाएंगे लेकिन खाना तो पड़ेगा ही वह मन आपको जबरदस्ती खाने  के लिए विवश  कर देगा और आप उस विवशता   का फिर कोई न कोई उपाय तो खोजेंगे  ही खोजेंगे और अंत में यही निष्कर्ष निकलेगा कि कैसे भी उस  demanded  food  को प्राप्त करके  खा लो,  और ish तरह apane मन की वह डिमांड hum पूरा करते है। 

इसी तरह सबका जीवन चलता रहता है . दरअसल लोग अपने मन को भरना ही चाहते हैं इसी वजह से वह तमाम प्रकार के स्वादिष्ट भोजन का सेवन करते हैं ताकि उनके मन की जो बेचैनी है वह ख़त्म  और मन शांत हो जाए. लेकिन ऐसा होता कहा है ?


दुनिया में शायद ही कोई ऐसा भोजन   ही नहीं ,खास करके धरती पर, जिसे खाने के बाद आप हमेशा हमेशा के लिए अपने मन  को शांत कर ले. अगर ऐसा हो जाता तो फिर कोई परेशानी ही नहीं थी क्योंकि हम लोग जितना भी स्वाद लेते हैं वह सब अपने मन की इच्छा को शांत करने के उद्देशय से करते है लेकिन  मन ऐसा बे  पेंदी का लोटा है जिसे कभी भरा  ही नहीं जा सकता है और खास करके स्वाद से। 


लेकिन रोज हमारा प्रयास यही  रहता है कि हम स्वाद से उसे भर लेंगे ,अरे कैसे भर लोगे ? और  कितना देर भरोगे  5 min , 10 min ,20 min ,30 

min  या फिर 1  घण्टा  उससे ज्यादा नहीं भर पाओगे. वैसे जनरली  ५ min ही स्वाद जीभ पर रहता है खाना खाने के बाद। 


लोग कहते हैं कि माला फिरते  युग गया माया मिली न राम किंतु मुझे लगता है की कहावत ऐसी होनी चाहिए कि खाते-खाते युग गया न मन भरा और  ना मिले श्रीराम. 


दरअसल बात केवल खाने तक ही सीमित नहीं है दिन भर में दो बार खाओगे तो कम से कम एक  से  दो बार टॉयलेट भी  तो जाओगे और टॉयलेट की प्रक्रिया कैसी है उसे बच्चा-बच्चा जानता है. हर दिन बस यही सब चलता रहता है और जीवन भर यही चलता है इसका कौन सा उपाय है ? कुछलोग  तो उत्तर में यह भी kah देंगे की ऐसी बात  है तो खाना ही मत खाओ।  लेकिन यह सब  कहना ही बस  आसान है करना अत्यंत कठिन ,तुम खुद सोच की कोई  क्या बिना खाए  रह सकता है और अगर खाना खा भी ले  तो क्या वह  टॉयलेट जाने की समस्या से छुटकारा पा सकेगा। 


मन  बिना पेंदी का लोटा है,(जैसा कि हम जानते हैं कि यदि लोटे की बॉटम को निकाल दिया जाए तो यह ऊपर और नीचे दोनों से खाली हो जाएगा , और जब बॉटम रहेगा ही नहीं  तो फिर उस लोटे  में कितना भी पानी डालें और कितने वर्ष तक ही  पानी क्यों न डालें , उसमें पानी  टिकेगा ही नहीं )  अर्थात मन को किसी भी प्रकार से भरा  ही नहीं जा सकता है.  स्वाद के इंद्रियों की इच्छा और जननेंद्रियों की इच्छा यह दोनों इच्छाएं किसी भी साधारण इंसान को बहुत ही ज्यादा परेशान करती है, साधारण इंसान की क्या बात करें अच्छे से अच्छे असाधारण लोगों को भी यह परेशान करती है, और अचूक शस्त्र बनकर  निरंतर वार करती रहती है और periodic वार करती है. मूर्ख लोगों को यही war  आनंद के रूप में प्रतीत होता है. जबकि ज्ञानी लोग इसे मृत्यु के रूप में देखते हैं.या  मृत्यु से भी भयंकर देखते  हैं. मृत्यु में तो व्यक्ति मर ही जाता है लेकिन स्वाद के  इंद्रियों की इच्छा और जन्मेंद्रियों की इच्छा में फंसा व्यक्ति का प्रत्येक दिन मृत्यु से भी बत्तर  बीतता  है.  


 स्वाद की इच्छा और  जनन इंद्रियों की इच्छा केवल थोड़े समय के लिए ही क्षणिक सुख देती है बाद में यह भयंकर  दुख ही देती है.  इसीलिए व्यक्ति का जीवन तनाव ग्रस्त  बीतता है उसके सोचने का ढंग बहुत ही मामूली और बच्चों जैसा हो जाता है क्योंकि  उसका  विवेक - बुद्धि    मन की गहराइयों में उतर ही नहीं पता है, इसलिए वह चीजों को सही ढंग से नहीं समझ नहीं पाता  है। 

और इसके साथ साथ किस समय क्या करना चाहिए इसका वह सही डिसीजन नहीं ले पता है जिससे उस व्यक्ति का और उसके परिवार का पतन हो जाता है ,कभी-कभी यह पतन  आंशिक रूप से होता है तो कभी-कभी यह  पूर्ण रूप से ,यह पतन डिपेंड करता है की किस किस परिस्थिति में उस ब्यक्ति ने  कितने हल्के भाव से क्या डिसीजन लिया है 


 यहां पर तलवार दोनों तरफ से चल रही   है। सेव चाहे तलवार पर गिरे या तलवार सेव के ऊपर गिरे दोनों case  में चोट सेव  को ही लगेगी  अर्थात आप खाना खाएं या ना खाएं दोनों हो दिशाओं में आपको कष्ट उठाना ही उठाना है तो इसका उपाय क्या है ? कैसे इस समस्या से बचा जाए.. ? क्या उपाय लगाया जाय  ?



इसका उत्तर आपको कुछ दिन बाद इसी पोस्ट में मिलेगा अगर आप इस वेबसाइट पर रेगुलर विजिट करते हैं तो आपको  उत्तर  जरूर मिलेगा  बशर्तें आप इस पोस्ट को आगे जरूर पढ़े  इस दौरान अगर आपके मन में  कोई सुंदर विचार  आ जाय तो उसे जरूर शेयर करें, ताकि अन्य लोगों को भी आपके विचारों का अनुभव मिल सके और अगर आपको यह पोस्ट पसंद आता है तो सभी अपने मित्रों, भाई ,बंधुओ और प्रिय रिश्तेदारों  को यह पोस्ट जरूर शेयर करें ,फेसबुक ,ट्विटर ,इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप सभी पर शेयर करें।


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