इंसान के मन से आवाज निकलती रहती है कि यह ठीक नहीं है फिर भी इंसान उस मन की आवाज को रौंद कर आगे चल जाता है और वहीं से उसका विनाश भी शुरू हो जाता है. हालांकि मन के अंदर जो यह आवाज निकलती है वह बहुत ही हल्की होती है लगभग 5 % से 20% तक ही इसका वॉल्यूम (परसेंटेज) होता है. इसका वॉल्यूम इस बात पर डिपेंड करता है कि किस परिस्थिति में मन से आवाज निकल रही है. उदाहरण के लिए अगर समझा जाए तो- जब कोई इंसान पहली बार सिगरेट पीने जाता है तो उसके मन से यह आवाज निकलती है की "अरे इसे मत पियो यह ठीक नहीं है" यह आवाज बहुत ही हल्की और मीठी होती है और इसका परसेंटेज { मतलब वॉल्यूम से है} 0% से लेकर 20 परसेंट तक होता है, अब यहां पर यह नहीं कहा जा रहा है कि इसकी रेंज यही तक limited है .यह डिपेंड करता है कि कौन सा व्यक्ति का mind सेट क्या है और वह किस परिस्थिति में कैसे और किस ढंग से सोच रहा है.
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तो उदाहरण के लिए यहां मान लेते हैं कि उसके मन से 10% यह आवाज निकली की "अरे इसे मत पियो यह ठीक नहीं है" लेकिन उसके अंदर की 90% की गलत इच्छा उस 10% कि सही इच्छा को दबा देती है. और व्यक्ति सिगरेट पी लेता है. अगले दिन या यूं कहे की कुछ दिन बाद जब व्यक्ति ka मन फिर सिगरेट पीने की तरफ आगे बढ़ता है तो उसके मन से फिर आवाज निकालती hai लेकिन इस बार आवाज का परसेंटेज 10% न होकर 5% या 7% ही होता है अर्थात पहले से कम परसेंटेज होता है. लेकिन चुकी इस बार इच्छा और ज्यादा बढ़ी है इसलिए वह फिर उस मन की आवाज़ को रौंद कर आगे बढ़ जाता है. इसी तरह दिन पर दिन मन के अंदर से निकलने वाली आवाज कमजोर पड़ती जाती है और इच्छा बढ़ती ही जाती है, जिसका परिणाम यह होता है कि एक दिन ऐसा भी आता है की मन के अंदर से आवाज ही निकालना बंद हो जाता है और इंसान तब तक अपनी गलत आदतों का आदी हो चूका होता है जो की बहुत ही मुश्किल से छूटता है या ता उम्र भी नहीं छूटता है.
वैसे मुश्किल से मुश्किल गलत आदतों को भी बहुत ही आसानी से छोड़ा जा सकता है- अब इसे कैसे छोड़ा जा सकता है अगर जानना है तो थोड़ा इंतजार करिए हम आपको बहुत ही जल्दी इसके बारे में जानकारी देंगे अतः हमारे पोस्ट के आने तक आप इंतजार करें..............................................
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