आपने अधिकतर देखा होगा कि कुछ लोग बिना सोचे समझे इल्जाम लगाते रहते हैं वह भी देवों के देव श्री कृष्ण भगवान जी ऊपर कि वह अगर श्री राधा माता से इतना ही प्रेम करते थे तो वह निर्वस्त्र गोपिकाओं को जो पानी में नहा रही थी उनके कपड़े चुराते है ? इसका क्या मतलब है ? इससे क्या उनके चरित्र ढीला है यह नहीं समझा जा सकता , श्री कृष्ण भगवान करे तो रासलीला और हम करें तो पाप लीला इसी तरह की उल्टी सीधी बातें लोग करते रहते हैं बिना कुछ सोचे समझे लोग इस तरह की पता नहीं क्यों करते रहते हैं,पता नहीं क्या मज़ा मिलता है।
लोग समझते नहीं कि वह इंसान है और जिनके बारे में वह इल्जाम लगा रहे हैं वह देवो के देव है अर्थात भगवान है। इंसान जब किसी इंसान के बारे में पुरा नहीं जान पाता तो वह भगवान को भला क्या जान पायेगा ,उसकी कभी इतनी हैसियत होगी ही नहीं .
यदि यह सब बाते कोई श्री गीता शास्त्र के ज्ञान के बिना कहता है तो थोड़ा बहुत समझ में आता भी है कि चलो वह व्यक्तित्व थोड़ा अज्ञानी किस्म का था इसलिए फालतू का बात बक रहा है , लेकिन यहां तो ऐसे व्यक्ति भी मिलते हैं जो श्री गीता शास्त्र एक से दो बार या उससे ज्यादा बार पढ़ें है फिर भी वे इस तरह की बातें करते हैं। अब ऐसे लोगों के बारे में क्या कहा जाए , इसका तो बस एक ही मतलब निकलता है कि या तो उस व्यक्ति ने श्री गीता शास्त्र को अच्छी तरीके से पढ़ा नहीं है या अगर पढ़ भी लिया है तो ठीक से समझा नहीं है क्योंकि अगर ठीक से समझ लेता तो वह इस तरह की घटिया और बेकार की बातें वह नहीं करता ।
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