आज का युवा माता--पिता का मोल नहीं समझ रहा है

बच्चे शायद भूल जाते हैं कि एक संतान की परवरिश में माता उसके मल को 4000 बार फेंकती है अर्थात साफ करती है तथा 8000 से 10000 बार उसके मूत्र को साफ करती है तब जाकर वह बच्चा कहीं चलने फिरने के लायक होता  है, 


कहते हैं कि इंसान अगर बूढ़ा  होने लगता है तो वह बच्चों के समान होने लगता है और इसे सही भी माना जा सकता है क्योंकि बच्चों के मुख में दांत शुरुआती दिनों में काफी कम होते हैं और जब कोई इंसान बूढ़ा होने लगता है तो उसके मुख में दांत भी गिरकर टूटने लगते हैं और इस तरह से देखा जाए तो उसके मुंह में भी दांत कम होने लगते हैं और बाल्यावस्था में अर्थात बचपन में बच्चे जैसे किसी तरह टांगो को अर्जेस्ट करके  चलते हैं इस तरह बूढ़े भी टांगो को अर्जेस्ट करके चलते हैं इस तरह से देखा जाए तो उम्र बढ़ने पर बूढ़े लोग बच्चों के समान ही  दिखने लगते हैं उनके मसल्स कमजोर होने लगते हैं  मतलब सब कुछ घटने  लगता है और काफी कम होने लगता है जो इस बात का संकेत देता है कि धीरे-धीरे वह ब्यक्ति बाल्यकाल में प्रवेश कर गया है और कहीं ना कहीं यह भी संकेत देता है कि धीरे-धीरे वह अपने अगले जन्म में प्रवेश करने की प्रक्रिया पर ऑटोमेटिक ढंग से अग्रसर  हो चला है .


इन सब बातों से यह स्पष्ट होता है कि बूढ़े लोग बच्चों के समान ही होते हैं अगर बूढ़े लोग बच्चों के समान होते हैं और किसी कारण वह चलने में असमर्थ हो जाए और वह कम से कम 4000 बार टॉयलेट करें तथा 8000 से 10000 बार मूत्र का विसर्जन करें तो क्या फिर आज का  मोबाइल छाप मॉडर्न संतान उन्हें साफ करने की क्षमता रखता है. इस बात का उत्तर आप खुद दे थोड़ा देर  रुककर  देने की कोशिश करें आपको बहुत सारे प्रश्नों का जवाब खुद पर खुद मिल जाएगा.  और उत्तर में यही मिलेगा की आज की मॉडर्न संतान वास्तव में अपने माता-पिता की उतनी सेवा नहीं कर सकता जितनी सेवा उन्होंने अपने  बाल्यकॉल  में उनसे ली है . इसलिए ब्यक्ति को अपने माता पिता पर  कम या ज्यादा मुँह चलने से पहले हज़ार बार  सोच लेना चाहिए ,अगर सोचने के बाद भी खूब मुँह चल रहा है तो 50% ही भोजन करे वह भी सादा ,  फिर भी अगर किसी समय भूख लगे तो  केवल और केवल फल ही खाये।  यह नहीं की लगे तीन - थरिया , तीन टाइम खाने और वह भी चटकदार , अगर ऐसे खाओगे तो आटोमेटिक भोकने वाला जो दोष रूपी  गुण है वह कभी नहीं जाएगा , और फिर आप माता- पिता क्या किसी  भी घर - बाहर के  लोगो को भी  लगोगे भोकने , और भोकने के इस गुण  के कारण कभी दिक्कत आगे बढ़ी तो समस्या भयंकर रूप ले सकती है ,क्योकि  कहा गया है की यही मुँह पान खाता  है और यही जूता -  मतलब  जहां बोलने की जरूरत नहीं है वहां मौन ही रहना चाहिए अर्थात चुपचाप रहना चाहिए , शांति से रहना चाहिए और इसका उल्टा भी सही है जहां बोलने की जरूरत है वहां चुप भी नहीं रहना चाहिए लेकिन यहाँ  बोलने का मतलब युद्ध करने जैसा भी नहीं है , अगर युद्ध की जरूरत पड़ी तो ही युद्ध करें अर्थात  कहने का मतलब यह हुआ कि बेवजह शब्दों  को तीर बनाकर युद्ध ना करें या कम से कम युद्ध करने की कोशिश करें।


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