हम पढ़ते ही नहीं और दूसरे के बहकावे में आकर इसे छोड़ देते है ,दुस्ट लोग आपको सही रास्ते नहीं चलने देंगे इसलिए उनके चक्कर में अर्थात उनकी बातो में ना फसे। जैसे आपने अपने जीवन में इतनी सारी किताबें पढ़ी वैसे श्री गीता शास्त्र को पढ़ने में क्या जाता है आप उसे भी पढ़ ही सकते हैं ,जब पढ़ लेंगे और पढ़ने के बाद जब अपने स्कूल - कॉलेज में प्राप्त होने वाले ज्ञान से तुलना (कंपैरिजन) करेंगे तो आपको लगेगा कि आपने जो स्कूल - कालेज में पढ़ा था वह सारी किताबें लगभग फालतू के कूड़ा करकट ही थे।
यह चीज़ केवल दूसरे के कहने या सुनने से नहीं समझ आएगा यह ज्ञान तभी समझ आएगा जब आप श्री गीता को पढ़कर अपने भौतिक ज्ञान से तुलना करेंगे तभी एहसास होगा इसके दिब्य पावर का और भौतिक ज्ञान के कूड़ा होने का।
लेकिन किस पब्लिशर की किताब पढ़े और किस राइटर का किताब पढ़े यह समस्या भी है क्योकि बहुत सारे लोग श्री गीता शास्त्र का संस्कृत अनुवाद को हिंदी में कन्वर्ट करके बुक छापते रहते हैं उनमे लेकिन यथार्थ का अभाव रहता है। और आजकल श्री गीता के नाम पर अपना धंधा ही चला रहे है
लेकिन श्री गीता प्रेस गोरखपुर के द्वारा लिखी गई जो श्री साधक संजीवनी श्रीमद भगवत गीता है वह बहुत ही शानदार है वह एकदम शानदार है लाजबाब है , और सबसे खास बात यह है की इसका प्राइस भी काफी कम है इसके लेखक है श्री रामसुखदास जी। क्या कमाल के राइटर है आप जरूर जरूर से पढ़ें इस किताब को।
इसके साथ अगर आप एक और गीता की बुक पढ़ना चाहते हैं किसी अन्य लेखक की तो वह है जयदयाल गोयंदुका जी इनके द्वारा अनुवादित श्री गीता भी अच्छी है यह किताब भी गीता प्रेस गोरखपुर से ही प्रकाशित है इन दोनों किताबों का अध्ययन हर किसी को जरूर से करना चाहिए यदि वह भी वह अपने जीवन में और अपने परिवार में,समाज में अच्छी गति चाहता है तो उसे पढ़ना ही चाहिए ये दोनों किताबे।
यकीन मानिएगा इन किताबों को पढ़ने के बाद आपका परिवार बहुत ही अच्छा चलेगा ,घर गृहस्थी ,परिवार इत्यादि चलने में आपको बहुत ज्यादा माथा -पैची भी नहीं करनी पड़ेगी एक बात और ध्यान देने की इन किताबों को जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी खुद भी पढ़ लेना चाहिए और अपने घर परिवार में बाल बच्चों को और सबको पढ़ा देना चाहिए क्योकि मिटटी जब तक गीली रहती है तभी तक उसे मोड़कर कोई भी चीज़ बनाई जा सकती है ,मट्टी जब तप कर कठोर हो जायेगी तो फिर उसे मोड़ना फिर आसान नहीं होगा अर्थात अत्यंत ही कठिन हो जाता है ।
कहने का मतलब जैसे ही कुछ हिंदी टेक्स्ट पढ़ना आ जाय तो उसी समय से ,तुरंत से श्री गीता पढ़ना सुरु कर दे जरा भी देर न करे क्योकि यदि रोग पनपने से पहले ही उसका उपचार जान लिया जाय और जानकार सावधान हो लिया जाय तो फिर हम रोग से बच जाते है , और रोग से बचना मतलब कष्ट से दूर रहना है । इसलिए फलदायिनी ज्ञान (आल टाइम सुपरहिट ज्ञान ) का भाव अच्छी तरह से सही समय पर सेट करके बैठा लीजिए.
इसलिए फलदायिनी ज्ञान(आल टाइम सुपरहिट ज्ञान ) का भाव अच्छी तरह से सही समय पर बैठ जाए. क्योंकि बाल्यावस्था में ही अगर बच्चों में सुंदर पौधे लगा दिया जाए तो उनकी उम्र के साथ-साथ वह पौधे भी बढ़ते रहते हैं और वह पौधे जब कुछ समय बाद वृक्ष बनते हैं तो वह वृक्ष एकदम लाजबाब होता है. मतलब कहने का यह हुआ कि अगर श्री गीता रूपी ज्ञान की बात को थोड़ा-थोड़ा ही करके अगर बच्चों में बालयकाल से ही प्रवेश करा दिया जाए केवल सार - संक्षिप्त से ही या डेमो के रूप में ही थोड़े-थोड़े ज्ञान उनमे दे दिए जाएं या टेक्स्ट ही पढ़ा दिया जाए तो उनके लिए यह ज्ञान बहुत ही फायदेमंद होगा क्योंकि इतना ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्हें पता चल जाएगा कि उन्हें करना क्या है ?
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