ढेर सारे कपड़े बदलने से कोई महात्मा नहीं बन जाता


  

आपने तो श्री रामायण और श्री महाभारत में दिखाई होगा कि अनेक प्रकार के राक्षस  थे जो बहुत ही जल्दी साधु-स्वभाव  वाला रूप धारण कर लेते थे और फिर तुरंत राक्षस  भी बन जाते थे तो इस तरह के तमाम चीज होती है ,भले ही वह राक्षस साधु बन जाए लेकिन है अंदर से वह राक्षस ही।  इसलिए चोला बदल लेने से कोई दुष्ट व्यक्ति महात्मा नहीं बन जाता अर्थात वह  दुष्ट ही रहता है। 



  इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि व्यक्ति के अंदर का अच्छा या बुरा स्वभाव ही उसका असली पोषाक  होता है और उसी से वह भगवान की नजर में अपना   गुण - दोष  सिद्ध करता है। 


 आप खुद सोचिए कि एक गरीब आदमी के पास केवल एक ही कपड़ा है  उसके पास कोई भी जोगिया कलर का वस्त्र नहीं है तो क्या हुआ बिना इस वस्त्र के वह  साधु या महात्मा नहीं हो सकता? और क्या वह   मोक्ष प्राप्ति और श्री हरि दर्शन का अधिकारी नहीं हो सकता  ?  इस बात का उत्तर आप खुद दीजिए  तो आपको खुद ही लगेगा कि यह तो एकदम सरासर गलत वाली बात है , यह तो कोई टर्म सेंड कंडीशन हुआ नहीं साधु या महात्मा बनने का यह सब बात आप खुद ही सोच लेंगे ,यह  आपको समझाने की जरूरत नहीं है,आपका मन खुद ही इतना सेंस करा  देगा की सही क्या है और गलत क्या है ?  इतना चीज़ व्यक्ति को स्वतः ऑटोमेटिकली एहसास हो ही जाती है उसको यह सब जानने के लिए किसी से पूछने या जानने  की जरूरत नहीं है मन यह सब ऑटोमेटिकली सेंस करा  देता है।  


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