हर जोगी कलर का वस्त्र धारण करने वाला व्यक्ति साधु नहीं होता

 

अगर वह ब्यक्ति थोड़ा सा ध्यान दे तो उसे समझना चाहिए कि अगर यही सब श्रेष्ठ होता तो श्री गौतम बुद्ध जो कि पहले सिद्धार्थ थे उनके राज - पाठ में तो उनके पिता ने यह सब सारी सुविधा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराई थी उनके लिए तो फिर वह क्यों धन -दौलत ,राज -पाठ और अपनी सुंदर स्त्री को छोड़कर चले गए ?  अब यहां पर यह मतलब मत निकालिए की आपको भी  सब कुछ छोड़कर जंगल चले जाना है। 

वहां उनके ( गौतम  बुद्ध )  जंगल जाने का मतलब यही था कि आम जन  ज्ञान प्राप्ति के लिए जाए और भरसक प्रयाश करे , याद रखियेगा की  अगर शरीर जंगल में रहे और दिमाग पत्नी,और दूसरी अन्य औरतो  के पास रहे , धन - दौलत के पास रहे या दोनों के पास रहे तो आप जंगल में रहकर भी जंगल में नहीं है वहीं  अगर आप घर में हैं और आपका दिमाग संसार की चीजों में बहुत ही कम रमा है या बिल्कुल है ही नहीं तो आप संसार में रहकर भी नहीं है। 


अर्थात घर में रहकर भी घर में नहीं है यहां पर कुल  मिला जुलाकर यही कहा जा रहा है कि जो साधक घर में या समाज में रहकर साधना करता है अर्थात सब कुछ काम करते हुए , घर - द्वार देखते हुए भगवान का भजन करता है , ज्ञान प्राप्त करता है , भक्ति करता है वह जंगल में जाकर तपस्या करने वाले व्यक्ति से ज्यादा श्रेष्ठ होता है अंत में श्री गौतम बुद्ध ने यही तो कहा था।  उन्होंने तो जीवन के रियल लाइफ स्टाइल पर रिसर्च की और  रिसर्च करने के बाद लोगों को रिसर्च डाटा भी दे दिए , लोग उस  डाटा के अनुसार नहीं चल रहे हैं तो इसमें उनका क्या दोष्  ?


,, साधु वाला जोगिया कलर का ड्रेस पहनने वाले  तो आपने  अधिकतर बाबा लोगो को देखा ही होगा  आजकल के साधु महात्मा एक खास किस्म की ड्रेस पहनते हैं जिसका रंग ऑरेंज कलर का होता है जो पुराने जमाने से लेकर नए जमाने तक इस बात का संकेत देता रहा है कि ये लोग  साधु महात्मा है।   अब इसका मतलब यह भी नहीं है कि जो यह ड्रेस पहन रहा है वह साधु महात्मा हो ही , इतना तो कॉमन सेंस से हर व्यक्ति समझ सकता है क्योंकि दुष्ट लोग भी यह ड्रेस पहन सकते हैं और यहां पर हम दुष्ट लोगों की बात ही नहीं करेंगे वह तो बहुत ही कॉमन सेंस की चीज है कि कोई भी , कोई दुष्ट   ब्यक्ति जोगी कलर का वस्त्र धारण करके आम - जन को मूर्ख बना ही सकता है। 


यहां पर बात थोड़ा सा महीन यह है कि लोगों को लगता है कि साधु संत बनने के लिए इस ड्रेस को अत्यंत पहनना जरूरी है नहीं तो आप साधु संत नहीं होंगे यह बात 100 में से 99% लोगों को लगता है कि यही होना ही चाहिए अगर आप साधु संत बनना चाहते हैं तो।  चलिए कुछ हद तक यह सही भी हो सकता है , लेकिन फिलहाल 5% से ज्यादा यह सही नहीं हो सकता क्योंकि आप खुद सोचिए कि अगर इंसान की चमड़ी बहुत गोरी है और उसका मन बहुत ही काला  है ,  अर्थात  वह दुष्ट स्वभाव वाला व्यक्ति है तो उसकी गोरी चमड़ी किस काम की , क्योकि उस चमड़ी से तो वह केवल साधारण इंसान को ही इंप्रेस कर सकता  है या सकती है अर्थात आकर्षित कर सकता/ सकती है।  लेकिन किसी शुद्ध ज्ञान के पारखी  व्यक्ति पर अपना बहुत ज्यादा असर नहीं डाल पाएगी अगर डालेगी भी तो बहुत ही कम  परसेंटेज और एनर्जी के रूप में। 


इसलिए साधु या महात्मा होने के लिए किसी विशेष किस्म की ड्रेस की कोई आवश्यकता नहीं है और आजकल तो अपने अधिकतर देखा होगा की बहुत से मठ  वाले ,बहुत से ऑर्गेनाइजेशन वाले , अपना ड्रेस बना रहे है उसमें भी  हर मठ ,ऑर्गेनाइजेशन तथा संस्थान इत्यादि वालों की अलग-अलग प्रकार की होलोग्राम होती है जो यह बता सके कि भाई यह फलाना  आर्गेनाइजेशन के हैं ,फालना मठ के  है फालना संघ के हैं तो यह सब  इन लोगो का एक तरह का  मार्केटिंग की चीज है।  


 सही आदमी इस तरह के टीम - टॉम  में नहीं फसता है उसके लिए तो बस कोई भी ड्रेस हो चलेगा क्योंकि वह जानता है कि साधु संत और महात्मा पूर्ण  रूप से होने के लिए शुद्ध मन  के  योग का होना जरूरी है  ना कि शरीर पर जोगिया कलर के वस्त्र का  होना जरूरी है , यह भी जरूरी हो सकता है लेकिन जैसा कि पहले ही  बताया गया है कि दो से पांच परसेंट से ज्यादा नहीं , हम तो उसे पर काम करेंगे  जो की बहुत ही ज्यादा जरूरी हो  ,  और जरूरी हैअपने अंदर के मन को शुद्ध करना और शुद्ध करने का उपाय है ज्ञान।   ज्ञान    में भी कौन सा ज्ञान लेना है  यह आपको पता है या नहीं अगर नहीं पता है तो भी यहां बताया जा रहा है, की  सबसे जरूरी है धर्म ज्ञान और धर्म ज्ञान में भी जो सबसे बड़ा ज्ञान है वह श्री गीता शास्त्र का ज्ञान,  इस ज्ञान को ही सबसे पहले प्राप्त करना चाहिए वह भी हर किसी को क्योंकि यह ज्ञान मोक्षदायनी  है और अति शीघ्रता से आपको मोक्ष प्रदान करती है इसलिए इसको सबसे पहले पढ़ना चाहिए ताकि मन की गति एकदम शुद्ध होकर अति ऊर्ध्व हो जाए जिससे मोक्ष मिलने में हमें अति सुलभता प्राप्त हो सके। 


अगर जोगिया वस्त्र इतना ही श्रेष्ठ माना जाता है पुरातन पुराने जमाने से लेकर अब तक तो व्यक्ति को समझना चाहिए कि हमारा वस्त्र जोगिया होने के बजाय हमारा मन जोगिया हो तब हमें श्रेष्ठ गति प्राप्त होगी।



अब खुद सोचिए कि बबूला क्या कभी हंस बन सकता है ?  तो उत्तर यही है कि नहीं बन सकता क्योंकि बगुला  में वह गुण है ही नहीं , भले यह  सफेद दिखता है हंस की तरह लेकिन वह हंस नहीं हो सकता , इसी तरह कौवा भले ही कोयल की तरह काली दिखती हो लेकिन वह कोयल जैसा कभी नहीं (    कहां कोयल की मधुर आवाज, और कहां कौवे की काव- काव  वाली आवाज दोनों में कितना अंतर है कौवे का आवाज तो ऐसा लगता है जैसे वह कान को फाड़ देगा वही कोयल की मधुर आवाज ऐसी लगती है कि मानो  कितना ब्यक्ति  परेशान रहे लेकिन कोयल की मधुर  आवाज सुनकर वह शांत और स्थिर हो जाता है )     हो सकता। 


इसी तरह कोई भी गीदड़ शेर की खाल ओढ़कर  शेर नहीं हो जाता , तो कहने का मतलब यही  हुआ की जब तक व्यक्ति के अंदर साधु का व्यवहार नहीं आएगा तब तक केवल चोला बदल लेने से कुछ नहीं होता या बहुत ही नहीं के बराबर होता है ( जिसको  को कि हम पांच परसेंट कहते हैं )  इसलिए अगर आप पैंट शर्ट पहनते हैं ,जींस पहनते हैं, लूंगी -गमछा कुछ भी पहनते हैं , तो कोई दिक्कत नहीं है बस वह सब साफ सुथरा रहे ,  क्योंकि व्यक्ति को हमेशा साफ़ सुथरे  वस्त्र धारण करना चाहिए और एक साधारण जीवन ही जीने की कोशिश करनी चाहिए व्यक्ति का वस्त्र बहुत ज्यादा चमकीला ना हो ,साधारण हो ,सिंपल हो  ,एकदम नया-नया वस्त्र भी पहनने से  बचे  क्योंकि यह दिमाग को रिलैक्स करने में दिक्कत देता है।  


 इसलिए आपका  जो मन करे उस  कलर का कपड़ा पहन कर भी साधु संत हो सकते हैं।  


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