काली चालीसा
दोहा:
माता काली महिमा बड़ी, जग में रह न सकै कोई।
जो नर तुहिं निरंतर ध्यावै, सब संकट दूर होय॥
चौपाई:
जय काली मां, जय महाकाली।
जो तुम्हें ध्यावे, सो निराली॥
दुष्ट दलन, करुणा की मूर्ति।
सद्गुण ज्ञान की तुम हो स्रोत॥
माँ काली का रूप विकराला।
दुष्टों के तुम काल कराला॥
महाकाली जगत की पालन।
सदा करो भक्तों का संबल॥
चार भुजाओं में शस्त्र विराजै।
दुष्ट दलन करने को साजै॥
मुख से रक्त धार झरती है।
भक्तों को माँ सुख देती है॥
चरणों में तेरे शीश नवाऊँ।
मन में सदा तुझे ध्याऊँ॥
तू ही है सच्चा सुख दाई।
तू ही है भवसागर तराई॥
जो भी तुहिं सुमिरन करई।
सकल संकट ता के टरई॥
जो नर ध्यान करे मन लाई।
काली माँ सब सुख देई॥
तेरे नाम जपे जो नर कोई।
भव बंधन से छूटे सोई॥
जो शरण तिहारी आवत है।
सर्व मनोरथ पावत है॥
जो नर ध्यान करे माँ तेरा।
सब दुख दूर होए उसका॥
महिमा अपरंपार है तेरी।
तू ही सबकी पालन हारी॥
सौ करोड़ है तेरा नामा।
सबसे तू करती है मामा॥
माँ काली की जोत जलाऊँ।
मन वांछित फल पाऊँ॥
तुम हो पालनहार जगत की।
करुणा सिंधु महाराणी॥
जो शरण तुम्हारी आवे।
सब संकट ता के मिट जावै॥
दीन दुखी पर तुम तरसाओ।
निज चरणों में शरण लगाओ॥
अंधकार में जो फँसा हो।
माँ उसको राह दिखाओ॥
काली का जो ध्यान लगावे।
वह भवसागर से तर जावे॥
तेरी महिमा गाऊँ मैं हरदम।
माँ तुम बिन कहाँ जाऊँ मैं॥
दोहा:
जो यह काली चालीसा पढ़े, माँ का ध्यान लगाए।
सकल मनोरथ पावे नर, अंत समय शिवधाम जाए॥
माँ काली की महिमा, जो सच्चे मन से पढ़ते और स्मरण करते हैं, उनके सभी संकट दूर होते हैं, और माँ उनकी रक्षा करती हैं।
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