॥दोहा॥
॥मातु लक्ष्मी करि कृपा, करिहौ हृदय निवास॥
जीवन में कà¤ी न हो, धन, सम्पत्ति की त्रास॥
॥चौपाई॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अà¤à¤¯ वरदान॥
जय जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निस दिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥
विष्णुपत्नी तुम हो माता, जगद्विधाता अंबे।
सदा लक्ष्मी रूप में, पतिव्रता धर्म निà¤ाते॥
हिमालय पर्वत पर वास, हरि संग सुर वर काज।
सप्तऋषि सुर मुनि जग में, कहत आपकी लाज॥
चौदह à¤ुवन में जय-जयकार, यश गावत नित नार।
हरि विष्णु संग नृत्य तुम्हारा, श्रवण सुने सब संसार॥
लक्ष्मीजी की करूँ आरती, जो कोई नर गावे।
तासु निकट दरिद्रता आवे॥
त्रिलोक पाताल की रानी, सर्व सिद्धि तुमसे आये।
यश कीर्ति प्राप्त करे नर, कोई सुमिरन जो कर पाये॥
आपकी महिमा विष्णु वखानी, कहत सद्ग्रंथ पुराण।
जो कोई पाठकरे स्तुति, उसको à¤à¤µà¤¸ागर तारे॥
ध्यान धरहूँ दीनदयाल, जय लक्ष्मी माता॥
तुमको सेवत हरिपद मृदु, हर दुख सुखदाता॥
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