1. श्री दुर्गा कवच
॥ अथ श्री दुर्गा कवचम् ॥
ॐ अस्य श्री चण्डी कवचस्य।
ब्रह्मा ऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः।
चामुण्डा देवता।
अंगन्यासोक्तमातरो बीजम्।
दिग्बन्ध देवता।
सर्व रक्षाकृतार्थे जपे विनियोगः॥
ध्यानम्
ॐ जटा जूट समायुक्तंardhramोहक सौरभम्।
लोचनत्रय संयुक्तं पीनोन्नतपयोधरम्॥
सिंहारूढां भुजैःखड्ग,
चर्म वज्रादिक धारिणीम्।
रक्तवर्णां महादेवीं नवरत्न कृत आभुषणम्॥
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
॥ कवच पाठ ॥
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥
अथ द्वार पालकाः॥
हे त्रिशूल धारिणी प्रातः स्मरणीये देवि॥
कुमारी देवि।
महालक्ष्मी माहेश्वरी माहेश्वरी॥
2. अर्गला स्तोत्र
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥
मार्कण्डेय उवाच।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते॥
मधुकैटभविध्वंसी विद्वेष समनं मम।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
महिषासुरनिर्माण विनाशिनि भवत्तमः।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
त्रैलोक्ये यानि वस्तूनि दानवानामपि प्रभो।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
3. कीलक स्तोत्र
ॐ कीलकं हनुमत्प्रतिज्ञं सर्वशक्ति नमस्तुभ्यम्॥
सर्वासुर विनाशाय दुर्गायै प्रणमाम्यहम्॥
ॐ श्री दुर्गे, देवी, चण्डि, सर्वार्थ साधिके।
शरणागतां सदेवीं भक्तानां संरक्षणे॥
4. दुर्गा चालीसा
॥दोहा॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महा विशाला।
नेत्र लाल भृकुटी विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
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