स्वाद बना जी का जंजाल



 यह दुनिया पूरी स्वाद की दीवानी है जिस व्यक्ति को जिस चीज में जितना ही स्वाद मिलता है उसे वह उतना ही अच्छा मानने लगता है फिर वह यह नहीं देखा कि वह चीज सफाई से बनी है या गंदगी से बनी है या कैसे बनी है ? बस स्वाद है तो  एकदम परफेक्ट है। उसमें कोई खराबी नहीं है।  इस तरह की उसकी सोच बन जाती है और वह सोच एक प्रॉपर माइंड सेट  के रूप में मन में जम भी  जाती  है.अर्थात freeze हो जाती है।  


जैसे इंसान को सादे  खाने में भी स्वाद का एहसास होता है लेकिन कुछ दिन बाद ,खाने में  उसे कुछ मजेदार खाना चाहिए यानी कुछ रंगीन खाना चाहिए तो जसके परिणाम स्वरुप यह होता है कि वह अपने खाने को और मसालेदार और जायकेदार  banaata है , जिससे उसको   थोड़ा और  स्वाद मिलता है, लेकिन उस ब्यक्ति को  कुछ दिन बीतने पर  usako और  स्वाद चाहिए , ऐसा विचार उसके मन पर हमला करता है तो ,इसके लिए वह नॉनवेज की तरफ जाता  है, और वह अब मुर्गा-  मुर्गी खाना शुरू कर देता है, और कुछ दिन खाने के बाद उसे लगता है कि उसे मजा नहीं आ रहा है  उसे और स्वाद चाहिए तो वह लगता है बकरे का मांस खाने।  


और स्वाद की चाहत ऐसे ही आगे बढ़ती है.

क्योकि बकरे की मॉस खाने से ज्यादा स्वाद मिलता है लेकिन कुछ लोगों की माने तो अगर इससे भी ज्यादा स्वाद चाहिए तो उसे pig  का मांस खाना चाहिए,जो कि  बकरे की मॉस से भी ज्यादा स्वादिष्ट लगता है. और आज के जमाने में लोग खाते भी है खास करके विदेशो में तो और ज्यादा सब खाते है। 


तो आप खुद सोचिए जिस  जानवर को लोग देखकर भागते हैं उसी का लोग स्वाद के चक्कर में मांस खाने लगते हैं इतना ही  नहीं ,अगर उसे pig  के जानवर से भी स्वादिष्ट मांस मिल जाए तो वह उसे भी खा लेंगे  जैसे - इंसान का मांस।  आपको जानकार हैरानी होगी की इंसान का मांस और टेस्टी होता है।  और पहले कुछ ऐसे होटल हुए हैं जो कि अवैध रूप से इंसान का मांस चोरी छिपे बनाते थे जो की  बाद में पकड़े भी गए।  यानी स्वाद की दीवानी दुनिया इंसानियत और मर्यादा नहीं देखती बस केवल स्वाद देखती है। 

स्वाद लेने वाले लोगो का स्वाद बढ़ता ही जाएगा और एक दिन आप स्वाद लेते-लेते गिर जाएंगे आपका अस्तर गिर जाएगा दुनिया की नजर में भी और स्वयं के भी नजर में। तो आप खुद सोचिए कि कितना ज्यादा हद तक आप को  स्वाद चाहिए और इस स्वाद के लिए क्या आप मर्यादा और इंसानियत  को छोड़ने के लिए तैयार है ना।  इन सब नॉनवेज के साथ अगर मदिरा का भी समावेश हो जाए तो फिर कहना ही क्या फिर तो स्वाद का खेल सोने पर सुहागा जैसा हो जाएगा। 


 दारू को आजकल के युवा लोग  एक फैशन के रूप में देख रहे  है तो ऐसे  युवा  लोगों को महान मूर्ख के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता है, दारू पिने से कोई स्मार्ट या हैंडसम या फैशनेबुल नहीं हो जाता यह ठीक उसी तरह है जैसे एक वृक्ष की जड़ो में पानी की जगह तेज़ाब डालना ,अब तेज़ाब डालने से वृक्ष की क्या दशा होगी इसे आप खुद ही समझ सकते है.

ठीक  इसी तरह दारू रूपी तेज़ाब को शरीर में डालने वालो को इसके अंजाम के बारे में भी जरूर सोचना चाहिए ,यह नहीं की केवल गटागट  दारू ही पिए जा रहे है और आगे पीछे कुछ सोच ही नहीं रहे है। 

दारु पीने वालों को एक बार जरूर सोचनी चाहिए कि उसके जीवन पर केवल उसका ही हक नहीं बल्कि उसके बच्चे माता-पिता, पत्नी  और बच्चे का भी हक है अतः उसे केवल अपने बारे में ही नहीं सोचनी चाहिए  कि उसने दारु पी ली है और उसके बड़े मजे हैं, बल्कि  अपनी पत्नी  और बच्चों के बारे में भी सोचना चाहिए और खास करके उनके भविष्य के बारे में तो जरूर सोचना चाहिए.  

 क्योंकि पत्नी और बच्चे आपके घर वापस लौटने  का इंतजार करते हैं, अगर घर का main  गार्जियन ही नहीं रहेगा तो उसके  बाल बच्चों और घर परिवार का क्या होगा ?

Back to main point again

 इंसान को ऐसा भी ना होना चाहिए कि स्वाद लेने के चक्कर में  वह इंसान का ही मांस खाने लगे और जानवर से भी बद्द्तर  हो जाए अर्थात पूरा pure  राक्षस ही  बन जाए। 


इसलिए लोगो को अपने जीभ को कण्ट्रोल में रखना चाहिए  नहीं तो आपका दिमाग आपको कंट्रोल करने लगेगा और जब आपका   दिमाग आपको कंट्रोल करने लगेगा तो फिर आप पागल कुत्ते की तरह भागते -फिरते रहेंगे और परेशान -परेशान से रहेंगे। जीवन में चैन नाम की चीज़ नहीं रहेगी। 

 अर्थात आप प्रत्येक दिन और प्रत्येक क्षण घुट-घुट कर जियेंगे और मरता  हुआ महसूस करेंगे और यह महान दुख का कारण होगा आपका अज्ञान रूपी जीवन शैली।  गलत -ढंग से खान पियन करने वाला हर रोज परेशां रहता है। वह अज्ञानी ब्यक्ति शायद यह नहीं जानता की गलत खान-पियन  इंसान की विचार में भ्रम डाल देती है जिससे उसे सही गलत में फर्क का एहसास बहुत कम % के रूप  में होने लगता है। 


जिससे वह गलत decision  (निर्णय ) लेने लगता है। और जैसा की ंसभी जानते है की गलत डिसिशन मुशीबत का तूफ़ान ही लेकर आता  है , खास करके मामला अगर बड़ा हो और ब्यक्ति ने अपने अज्ञान के कारन उस समय गलत decision  लिया हो तो। खैर मुर्ख लोगो के लिए ज्ञान का मतलब पैसा ,स्वाद और मज़ा बस यही है। 


खैर कुछ लोग समय से पहले ही चीजों को समझ जाते और कुछ लोग अपना नुकसान ( damage )  करके अर्थात बहुत बड़ा डैमेज करके सीखते हैं। 


लेकिन जो लोग समय से पूर्व सीख लेते हैं ,दूसरों के डैमेज से सीख लेते हैं वह ज्ञानी होते हैं और जो अपना डैमेज खुद करके समझते हैं वह ज्ञानी नहीं  बल्कि महामूर्ख होते है क्योंकि जो अपना डैमेज करके सीखता  है ( छोटे-मोठे damage  चलेंगे  लेकिन बड़े damage  कदापि नहीं ) वह तब तक अपना और अपने परिवार का नुकसान कर चुका होता है तो ऐसे लोगों के लिए बस एक ही बात है कि अब  पछताए होत  क्या जब  चिड़िया चुग गई खेत।  अर्थात जब सब कुछ नस्ट हो जाय फिर सुधार का क्या मतलब है। 


इसीलिए  तो शास्त्र में कहा  गया है की पहले ज्ञान प्राप्त कयना चाहिए की किस समय क्या करना है और क्या नहीं करना है , फिर  निर्णय लेना चाहिए  और इस तरह का ज्ञान आपको श्रीमद भागवत GEETA  के अध्ययन से ही मिलेगा न की मैथ ,साइंस ,हिंदी,बायोलॉजी,कॉमर्स  या 10 th ,12th ,B.A ,बीएससी ,बी-टेक,M-TECH ,B.ED ,MBBS  इत्यादि  जैसी किताबो या डिग्रीयो से। 


यहां पर यह भी नहीं कहा जा रहा है कि आप स्कूल कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दें और श्री  भागवत गीता का अध्ययन करने लगे, ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा रहा है आपकी इच्छा  है तो आप स्कूल -कॉलेज की पढ़ाई पढ़ते रहे लेकिन उसके साथ-साथ श्रीमद् भागवत गीता को जरूर जरूर से अध्धयन  करे और इसको सबसे पहले पढ़ने की कोशिस करे जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी आप इसका ज्ञान प्राप्त कर ले। 


15 साल से पहले हर व्यक्ति को इसका ज्ञान होना चाहिए. जिस व्यक्ति को श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान है वास्तव में वही पंडित है. ऐसा गीता में खुद ही लिखा गया है, एक बार आप पढ़िए तो आपको खुद ही पता चलेगा कि वास्तव में आप कितने बड़े मुर्ख हैं, यह किताब पढ़ने के बाद आपकी मूर्खता आपके सामने एकदम खुल-खुल कर चली  आएगी. आप बहुत प्रकार के बड़ी-बड़ी मुश्किलों से बच जाएंगे. अगर गीता पढ़ने की बहुत ही इच्छा है तो आप श्री गीता प्रेस गोरखपुर का पब्लिकेशन का   पढ़े 


किताब  का नाम = श्रीमद भगवत गीता 

लेखक  =  श्री रामसुखदासजी  

लेखक  =  श्री jaydayal goyanduka

प्रकाशक= गीताप्रेस गोरखपुर 

read above two books 

अंग्रेज़ो ने हमारे देश की अमूल्य ज्ञान को अपने छल और चतुराई से नस्ट कर दिया और अपने देश का पैटर्न थोप दिया हमारे देश पर नतीजा यह है की आज का बच्चा श्रीमद भागवत गीता जो की श्री कृष्ण भगवान के मुख से निकली है उसे वह ना पढ़कर बेफजूल की चीज़े पढ़ रहा है तकीनीकी और मॉर्डन के नाम पर। और यही  बच्चा कल बड़ा होकर माता पिता को गरिया रहा है या हाथ उठा रहा  है। 


और इस सब का मुख्य  कारण है उसका अज्ञानी  होना क्योंकि उसे मर्यादा क्या होती है ? इसका ज्ञान उसने प्राप्त किया ही नहीं है जो कि उसे सिर्फ श्रीमद  भागवत गीता के अध्ययन से ही मिलेगा तो जब उसने ज्ञान का अध्ययन किया ही नहीं है तो ज्ञानी वह होगा कैसे ? 

और जब उसे ज्ञान मिलेगा ही नहीं तो अपने घर के माता-पिता बुजुर्ग या किस ब्यक्ति से किस समय क्या व्यवहार करनी चाहिए क्या डिसीजन लेनी चाहिए  , क्या करना चाइये और क्या नहीं करना  चाहिए उसे वह कैसे सीख पाएगा। 

अंत में केवल इतना ही कहना चाहूंगा श्रीमद् भागवत गीता के सामने कोई भी किताब नहीं ठहरती या कोई भी डिग्री नहीं  ठहरती।  श्री गीता का अध्ययन करने के बाद आप भी यही कहेंगे 

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